उत्तराखंड
कोट ब्लॉक में बाघ का आतंक,इंसानियत दम तोड़ चुकी है-दूध खत्म तो गौवंश लावारिस,मौत पर मुआवज़े की होड़

पौड़ी गढ़वाल/कोट-पौड़ी गढ़वाल के कोट ब्लॉक से एक बार फिर इंसानियत को शर्मसार करने वाली खबर सामने आई है। बाघ के बढ़ते आतंक के बीच, स्थानीय लोग न तो गायों की सुरक्षा को लेकर गंभीर हैं और न ही अपनी ज़िम्मेदारी निभा रहे हैं। बीती रात करीब 12 बजे बाघ ने एक साथ दो गायों को मार डाला। लेकिन यह पहला मौका नहीं है — यहां हर कुछ दिन में एक गाय या बैल बाघ का शिकार बन रहा है।एक समय था जब इस क्षेत्र में 90 से ज़्यादा गाय-बैल खुले में विचरण करते थे, लेकिन आज यह संख्या घटकर महज़ 55 से 60 रह गई है। इसका कारण सिर्फ बाघ नहीं, बल्कि इंसानों की बेरुखी भी है। स्थानीय लोग गायों से जब तक दूध मिलता है, तब तक उन्हें पालते हैं। लेकिन जैसे ही गाय दूध देना बंद करती है या बछड़ा जनती है, उसे सड़क पर बेसहारा छोड़ दिया जाता है।कई मामलों में तो जानबूझकर गाय के कान पर लगे सरकारी टैग तक हटा दिए जाते हैं ताकि उसकी पहचान न हो सके। छोड़ी गई गायें पहले गांव के खाली मैदानों में रात बिताती थीं, लेकिन अब लोगों ने इन मैदानों को भी बंद कर दिया है। दीवारें खड़ी कर दी गई हैं, जिससे न तो गायों को शरण मिल पा रही है, न ही बचने का रास्ता।बाघ के लिए ये अब खुले शिकारगाह बन गए हैं और गायें पूरे गांव में शाम से ही खौफ में दौड़ती रहती हैं। जानवरों की आंखों में हर शाम के बाद सिर्फ डर और आंसू नजर आते हैं।गाय जब मारी जाती है तो उसकी लाश कई बार खुले में ही पड़ी रहती है, जिस पर जंगली जानवर और आवारा कुत्ते मुंह मारते हैं, और पूरे इलाके में सड़ांध व बदबू फैल जाती है।सबसे शर्मनाक पहलू तब सामने आता है जब किसी गाय की मौत हो जाती है — उसके मालिक खुद पहुंचते हैं, कान काटकर टैग दिखाते हैं और मुआवज़े की मांग करते हैं। मतलब अब मौत भी मुनाफे का ज़रिया बन गई है।

यहां के लोगों को सिर्फ नेतागिरी से मतलब है, मदद से नहीं। पूरे गांव को इन घटनाओं की जानकारी है, लेकिन एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जो सामने आकर कुछ बोले या जागरूकता दिखाए। इंसानियत मर चुकी है यहां। गाय जब मरती है तो सब दुख जताते हैं, सोशल मीडिया पर फोटो डालते हैं, पर जब बचाने का समय आता है — तो सब पीठ फेर लेते हैं।स्थानीय जागरूक लोगों का कहना है कि यह सिर्फ बाघ का संकट नहीं है, बल्कि हमारी सामाजिक संवेदनाओं का भी पतन है। न गायों के लिए कोई गोशाला है, न चारा, न सुरक्षा, न नीति। बस छोड़ा जा रहा है और मुआवज़ा लिया जा रहा है।




