उत्तराखंड
जनप्रतिनिधि के कार्यालय पर कॉंग्रेस ने उठाये सवाल,बोर्ड बैठक में पास किये बिना 25 से 30 लाख का अतिक्रमण में बना डाला कार्यालय
कोटद्वार-कोटद्वार नगर निगम एक बार फिर से सवालों के घेरे में है। दूसरी बार निर्वाचित मेयर द्वारा सत्ता संभालने के बाद जिस पारदर्शिता और जनसेवा की उम्मीद नगरवासियों को थी, वह उम्मीद अब निराशा में बदलती नजर आ रही है।शपथ ग्रहण के बाद से आज तक एक भी बोर्ड बैठक आयोजित नहीं हुई, लेकिन इस बीच मेयर ने 25 से 30 लाख रुपये की लागत लगाकर अपना कार्यालय तैयार कर उसका उद्घाटन भी कर डाला।जनता भी इसे खुला सत्ता का दुरुपयोग मान रही है।

नगर निगम अधिनियम के मुताबिक, किसी भी कार्य को शुरू करने से पहले बोर्ड बैठक में उसका प्रस्ताव पेश किया जाता है।पार्षदों की सहमति से प्रस्ताव पास होता है,और तभी कोई बजट या निर्माण कार्य आगे बढ़ता है।लेकिन यहां तो न बैठक हुई,न चर्चा और न ही कोई पारदर्शिता—फिर भी लाखों रुपये का काम कर डाला।नगर निगम में जनप्रतिनिधि के बने इस कार्यालय से लोगों में नाराजगी भी देखी जा रही है लेकिन कोई भी खुलकर सामने नहीं आ रहा है।तहसील प्रशासन हो या नगर निगम समय समय पर शहर से अतिक्रमण हटाते रहे हैं और इस बीच कई बार अधिकारियों और व्यापारियों के बीच तीखी नोकझोंक भी हुई है।अतिक्रमण के नाम पर परेशान करने का व्यापारी आरोप लगाते रहे हैं और बाजार बंद कर प्रदर्शन भी किया जाता रहा है।लेकिन जनप्रतिनिधि की दबंगई के आगे सबने चुप्पी साध ली है।
वही कॉंग्रेस की पूर्व मेयर प्रत्याशी रहीं रंजना रावत ने नाराजगी जताते हुए कहा कि यह लोकतंत्र नहीं,तानाशाही है।बोर्ड की बैठक बुलाई ही नहीं गई….और अपनी मनमानी की जा रही है।अगर योजनाएं खुद ही मेयर ने करनी है तो बोर्ड की जरूरत ही क्या है ?
रंजना रावत ने यह भी आरोप लगाया है कि मेयर कार्यालय “मनमानी” पर उतर आये हैं।वहां पर मेयर कार्यालय कम और पार्टी का कार्यकाल ज्यादा लग रहा है।जो कार्य प्रस्तावित ही नही हुए हैं,जब जनता के प्रतिष्ठान अतिक्रमण में आते हैं ऐसे में जनप्रतिनिधि का कार्यालय अतिक्रमण में बनाना कहीं न कही मुख्यमंत्री और माननीय न्यायालय के आदेशों की अवहेलना है।मुख्यमंत्री की साफ छवि को धूमिल करने का प्रयास किया जा रहा है।
प्रशासन और सरकार की चुप्पी पर भी सवाल
अब तक न तो प्रशासन ने इस पूरे मामले पर कोई संज्ञान लिया है,और न ही शहरी विकास विभाग की तरफ से कोई जांच के आदेश जारी हुए हैं।
क्या यह मामला इसी तरह दबा दिया जाएगा? या फिर कोई जवाबदेही तय की जाएगी?
नगर निगम के जनप्रतिनिधि का यह रवैया लोकतंत्र की आत्मा के खिलाफ है-न पारदर्शिता,न जवाबदेही और न ही जनता की भागीदारी।




