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उत्तराखंड

कानूनगो बोले: जमीनों का डेटा दे दिया,आयुक्त ने कहा- नहीं मिला कोई लेखा-जोखा

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कोटद्वार-कोटद्वार नगर निगम को बने भले ही 6 साल से अधिक समय बीत चुका हो…लेकिन आज भी निगम क्षेत्र में शामिल किए गए ग्रामीण इलाकों की जमीनों पर स्पष्ट स्वामित्व नहीं है। नतीजा यह है कि विकास कार्य और आवश्यक परियोजनाएं ठप पड़ी हैं, क्योंकि जमीनें अब भी राजस्व विभाग के अधीन हैं और नगर निगम केवल बाट जोह रहा है।
नगर निगम में शामिल क्षेत्रों की जमीनें अब तक निगम को हस्तांतरित नहीं की गई हैं…जिससे निगम के सामने कार्यालय निर्माण, बारात घर, गेस्ट हाउस, पुस्तकालय जैसे मूलभूत ढांचे तैयार करने में बाधाएं बनी हुई हैं। अधिकारियों की मानें तो यदि निगम को ज़मीनों का स्वामित्व दे दिया गया होता, तो कई योजनाएं अब तक धरातल पर उतर चुकी होतीं।


हाल ही में एक वायरल वीडियो में तहसील के कानूनगो यह दावा करते नजर आए कि जमीनों का डेटा निगम को सौंप दिया गया है…लेकिन जमीनी हालात इस दावे को झुठलाते हैं।विशेषज्ञों का कहना है कि अगर निगम को वास्तव में ज़मीनों की जिम्मेदारी दी गई होती…तो जमीनों को 143 (कृषि से गैर-कृषि उपयोग में परिवर्तन) कराने की आवश्यकता ही न पड़ती।


यह स्थिति इतनी गंभीर है कि नगर निगम को अपने स्थायी कार्यालय के लिए भी जमीन की खोज करनी पड़ रही है। अगर ग्रामीण क्षेत्रों की ज़मीनों का उचित हस्तांतरण हुआ होता, तो निगम के पास खुद की परिसंपत्तियां होती, जिससे ना सिर्फ प्रशासनिक कार्य सरल होते…बल्कि स्थानीय विकास भी गति पकड़ता।
रुके हुए हैं ये संभावित प्रोजेक्ट्स:गेस्ट हाउस,सामुदायिक भवन (बारात घर)पुस्तकालय,स्थानीय शहरी सुविधाएं,स्वरोजगार प्रोत्साहन केंद्र
आर्थिक मजबूती पर भी असर
जमीनों का हस्तांतरण न होने से कोटद्वार नगर निगम की आर्थिक स्थिति भी प्रभावित हो रही है। यदि निगम के पास अपनी जमीनें होतीं, तो वह विभिन्न योजनाओं के माध्यम से स्व-वित्त पोषित प्रोजेक्ट्स चला सकता था, जिससे राजस्व में भी वृद्धि होती।
जनता और निगम दोनों कर रहे हैं इंतजार
स्थिति साफ है…निगम और आम जनता दोनों विकास की बाट जोह रहे हैं, लेकिन जब तक जिम्मेदार विभाग आपसी समन्वय से ज़मीनों का स्पष्ट हस्तांतरण नहीं करता, तब तक कोटद्वार का विकास अधूरा ही रहेगा।

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